दुःख उठाने और आनन्दित होने के लिए बुलाये गए: मसीह के क्लेशों का लक्ष्य पूरा करने के लिए

अब मैं उन दुःखों के कारण आनन्द करता हूं; जो तुम्हारे लिये उठाता हूं; और मसीह के क्लेशों की घटी उस की देह के लिये, अर्थात् कलीसिया के लिये, अपने शरीर में पूरी किए देता हूं। जिसका मैं परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार सेवक बना, जो तुम्हारे लिये मुझे सौंपा गया, ताकि मैं परमेश्वर के वचन को पूरा-पूरा प्रचार करूं। अर्थात् उस भेद को जो समयों और पीढि़यों से गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगों पर प्रगट हुआ है। जिन पर परमेश्वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है ? और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है। जिसका प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को जता देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं कि हम हर एक व्यक्ति को मसीह में सिद्ध करके उपस्थित करें। और इसी के लिये मैं उसकी उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ के साथ प्रभाव डालती है तन मन लगाकर परिश्रम भी करता हूं ।

मैं पद 24 पर और पौलुस के ‘‘मसीह के क्लेशों की घटी … पूरी किए देता हूं’’ पर ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूँ। मसीह के क्लेशों में कोई भी घटी कैसे हो सकती थी ? क्या हमारे लिए उसका दुःख उठाना और उसकी मृत्यु पूर्णतया पर्याप्त नहीं थी ? तो पद 24 में उसका क्या अर्थ है और ये हम पर कैसे लागू होता है ?

इस परिच्छेद का सार प्रस्तुत करते हुए

लेकिन पद 24 को उचित रीति से देखने के लिए, आइये हम इसे शेष आयतों के सम्बन्ध में देखें। पद 29 से आरम्भ करके आइये हम उलटा चलें और सार प्रस्तुत करें कि इस परिच्छेद में पौलुस क्या कह रहा है।

पद 29:- पौलुस कहता है कि एक प्रयोजन है जिसके लिए वह परिश्रम करता है। और इस परिश्रम का संघर्ष, घोर-व्यथा, उसकी स्वयँ की ऊर्जा मात्र नहीं है। ये मसीह की शक्ति है जो सामर्थ के साथ उसके अन्दर काम करती है।

पद 28 वर्णन करता है उस उद्देश्य का, जिसके लिए पौलुस परिश्रम करता है, यथा, हर उस व्यक्ति को जिस तक वह पहुँचता है, ‘‘मसीह में सिद्ध’’ करके प्रस्तुत करे। और वह इसे मसीह का प्रचार करके, हर एक को सावधान करके, और हर एक को सिखा कर, करता है। ये पौलुस का अन्तहीन परिश्रम है, जिसकी ऊर्जा मसीह देता है।

पौलुस जो प्रचार करता और सिखाता है, पद 26-27, उसे अधिक स्पष्टता के साथ परिभाषित करता है। पद 26 में इसे एक ‘‘भेद’’ कहा गया है, इसलिए नहीं कि इसे समझा नहीं जा सकता, अपितु इसलिए कि यह युगों से छुपा था और अब सन्तों पर प्रगट किया गया है। तब पद 27, इस भेद की महिमा के धन का वर्णन करता है। ये, ‘‘मसीह जो महिमा की आशा, तुम {अन्यजातियो} में’’ है। बीते युगों में जो पूरी तरह से प्रगट नहीं किया गया था, वो ये था कि ‘यहूदी मुक्तिदाता’ — मसीह — गैर-यहूदी जातियों तक वास्तव में पहुँचेगा और गैर-यहूदी लोगों में वास करेगा — कि ‘वह’ वास्तव में उन में वास करेगा और उन्हें इब्राहीम की प्रतिज्ञा देगा, परमेश्वर के राज्य में सभी सन्तों के साथ, महिमा की आशा।

परन्तु अब वो भेद प्रगट किया जा रहा है और पौलुस मसीह का प्रचार कर रहा है और हर जगह सिखा रहा है कि मसीह का अन्दर वास करना और परमेश्वर की महिमा की आशा, उन सभी की है जो मसीह पर विश्वास करते और परमेश्वर की महिमा में वास्तव में आशा रखते हैं (1:4,23)।

पद 25, मात्र ये कहता है कि मसीह का यह प्रचार, एक भण्डारीपन की परिपूर्णता है जो परमेश्वर ने पौलुस को, परमेश्वर के वचन को फैलाने के लिए दिया है। वह कलीसिया का एक सेवक और परमेश्वर का एक भण्डारी है। उसका उत्तरदायित्व है कि सभी जातियों तक परमेश्वर का वचन ले जावे, उन्हें महिमा की आशा प्रस्तुत करे, और उन्हें विश्वास में बुलाये। और इसलिए वह, सब जातियों में से परमेश्वर के चुने हुओं को इकट्ठा करने के द्वारा, और उन्हें सिखाने और समझाने के द्वारा ताकि वे मसीह में सिद्ध बनाकर प्रस्तुत किये जा सकें, कलीसिया का एक सेवक है।

पद 24 कहता है कि सब जातियों में मसीह और महिमा की आशा के भेद को फैलाने, और फिर उन्हें समझाने और सिखाने की इस सेवकाई में दुःखभोग सम्मिलित है। ‘‘अब मैं उन दुःखों के कारण आनन्द करता हूं; जो तुम्हारे लिये उठाता हूं; और मसीह के क्लेशों की घटी उस की देह के लिये, अर्थात् कलीसिया के लिये, अपने शरीर में पूरी किए देता हूं।’’

‘‘घटी को पूरी किए देता हूं’’ का क्या अर्थ है ?

अब इसका क्या अर्थ है कि जब पौलुस कलीसिया के लिए दुःख उठाता है — अधिक से अधिक लोगों में महिमा की आशा को फैलाते हुए, और मसीह के भेद के बारे में, और ऐसा करने में दुःख उठाना उन्हें सिखा रहा है — वह ‘‘मसीह के क्लेशों की घटी को पूरी कर रहा है’’ ? कैसे कोई मनुष्य उसे पूरा कर सकता है, जो निश्चित ही अपने में उतना ही पूर्ण है जितना कि कोई दुःखभोग हो सकता है ?

संदर्भ, इसके अर्थ का सुझाव देता है

मैं सोचता हूँ कि संदर्भ जो हमने अभी देखा, सुझाव देता है कि पौलुस का दुःखभोग, मसीह के दुःखभोग की घटी को इसके मूल्य में कुछ भी जोड़ते हुए, पूरा नहीं करता, अपितु उन्हें उन लोगों तक पहुँचाने के द्वारा पूरा करता है, जिन्हें आशीष देना उनका आशय था। मसीह के क्लेशों में जो घटी है, वो ये नहीं कि वे मूल्य या गुण में अपूर्ण हैं, मानो कि वे उन सभों के पापों को पर्याप्त रूप से ढाँप नहीं सके जो विश्वास करते हैं। जो घटी है वो ये कि मसीह के क्लेशों का असीमित मूल्य, संसार में ज्ञात नहीं है। वे अभी भी अधिकांश लोगों के लिए भेद (छिपे हुए) हैं। और परमेश्वर का ध्येय ये है कि वो भेद सभी गैर-यहूदियों में प्रगट किया, फैलाया जावे। अतः क्लेशों में इस अर्थ में घटी है कि वे जाति-जाति में देखे व जाने नहीं गए हैं। उन्हें ‘वचन’ की सेवकाई करने वालों के द्वारा ले जाया जाना चाहिए। और ‘वचन’ के वे सेवक, दूसरों तक उसे पहुँचाने के द्वारा, मसीह के क्लेशों में जो घटी है, उसे पूरा करें।

फिलिप्पियों 2: 30 में समान शब्द

फिलिप्पियों 2: 30 में इसी के समान शब्दों का उपयोग करने में, इसका एक मजबूत पुष्टीकरण है। फिलिप्पी की कलीसिया में इपफ्रुदीतुस नाम का एक मनुष्य था। जब वहाँ की कलीसिया ने पौलुस के लिए सहारा (शायद पैसा या आपूर्तियाँ अथवा पुस्तकें) एकत्र किया, उन्होंने उसे इपफ्रुदीतुस के हाथ, रोम में पौलुस को भेजने का निर्णय लिया। इस आपूर्ति के साथ अपनी यात्रा में इपफ्रुदीतुस अपनी जिन्दगी को लगभग खो देता है। पद 27 कहता है कि वह इतना बीमार हुआ कि मरने के निकट था, लेकिन परमेश्वर ने उसे बचाया।

तब पद 29 में पौलुस फिलिप्पी की कलीसिया को कहता है कि जब इपफ्रुदीतुस वापिस आता है, वे उसका सम्मान करें, और वह पद 30 में अपना कारण देता है, जिसके शब्द कुलुस्सियों 1: 24 के बहुत समान हैं। ‘‘क्योंकि वह मसीह के काम के लिये अपने प्राणों पर जोखिम उठाकर मरने के निकट हो गया था, ताकि जो घटी तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में हुई, उसे पूरा करे।’’ अब, मूल वाक्यांश में, तुम्हारी ओर से मेरी सेवा में ‘‘जो घटी … उसे पूरा करे,’’ कुलुस्सियों 1: 24 में मसीह के क्लेशों में ‘‘घटी … पूरी किये देता हूं’’ के लगभग समान है।

तब, किस अर्थ में, पौलुस के प्रति फिलिप्पीवासियों की सेवा में ‘‘घटी’’ थी और किस अर्थ में इपफ्रुदीतुस ने उसे ‘‘पूरा किया’’ जो उनकी सेवा में घटी थी ? मैं सोचता हूँ कि एक सौ साल पहिले एक टीकाकार, ‘मारविन विन्सेन्ट’ इसे बिल्कुल ठीक समझ लेता है।

पौलुस को दी गई भेंट, एक देह के रूप में कलीसिया की एक भेंट थी। ये, प्रेम का एक बलिदानपूर्ण प्रस्तुतीकरण था। जो घटी थी, और जो पौलुस और कलीसिया के लिए समान रूप से सुखद रहा होता, वो था, व्यक्तिगत रूप से कलीसिया द्वारा इस भेंट का दिया जाना। ये असम्भव था, और पौलुस, इपफ्रुदीतुस की प्रीतिमय और उत्साहपूर्ण सेवकाई के द्वारा, उसे इस घटी की आपूर्ति के रूप में, चित्रित करता है। (एपिजि़ल टू द फिलिप्पियन्स एन्ड टू फिलेमोन, आई.सी.सी., पृ. 78)

हम कैसे मसीह के क्लेशों में ‘‘घटी को पूरा करते’’ हैं

मैं सोचता हूँ कि कुलुस्सियों 1: 24 के शब्दों का भी ठीक यही अर्थ है। मसीह ने दुःख उठाने और पापियों के लिए मरने के द्वारा संसार के लिए एक प्रेम बलिदान तैयार किया है। ये पूर्ण है और इस में किसी बात की घटी नहीं है — केवल एक चीज छोड़कर, संसार की सभी जातियों को और आपके कार्यस्थल के लोगों को स्वयँ मसीह द्वारा व्यक्तिगत प्रस्तुतीकरण। इस घटी के लिए परमेश्वर का उत्तर है कि मसीह के लोगों (पौलुस जैसे लोगों) को बुलाये कि संसार को मसीह के क्लेशों को को प्रस्तुत करें — उन्हें यरूशलेम से जगत के छोरों तक ले जायें।

ऐसा करने में हम ‘‘मसीह के क्लेशों की घटी को पूरा करते हैं।’’ हम उसे परिपूर्ण करते हैं जिसके लिए वे बनाये गए थे, यथा, ऐसे लोगों के संसार को व्यक्तिगत प्रस्तुतिकरण, जो उन क्लेशों के असीमित मूल्य को नहीं जानते।

लेकिन ध्यान दीजिये कि पौलुस इसे पद 24 में कैसे कहता है:- वह कहता है कि ये उसके दुःख उठाने में है और उसके शरीर में — अर्थात्, उसके वास्तविक, दुःख उठाते हुआ शरीर में, वह मसीह के क्लेशों की घटी को पूरा करने में अपना हिस्सा पूरा करता है। अतः, पौलुस अपने दुःख उठाने और मसीह के क्लेशों के बीच एक बहुत निकट का सम्बन्ध देखता है। ये क्या अर्थ रखता है, मैं सोचता हूँ, यह कि परमेश्वर का ध्येय है कि ‘उसके’ लोगों के क्लेशों के द्वारा, मसीह के क्लेश संसार के सम्मुख प्रस्तुत किये जावें। परमेश्वर, मसीह की देह, कलीसिया के लिए, वास्तव में चाहता है कि कुछ दुःखों का अनुभव करे जो ‘उसने’ अनुभव किये ताकि जब हम क्रूस के ख्रीष्ट को लोगों को प्रस्तुत करते हैं, वे क्रूस के ख्रीष्ट को हम में देखें। ‘उसे’ उन्हें प्रस्तुत करने में, और प्रेम का जीवन जो ‘उसने’ जिआ उसे जीने में जो क्लेश हम अनुभव करते हैं, उनके द्वारा हमें मसीह के क्लेशों को लोगों के लिए वास्तविक बनाना है।

‘‘मैं उन दुःखों के कारण आनन्द करता हूं; जो तुम्हारे लिये उठाता हूं ... मसीह के क्लेशों की घटी … पूरी किए देता हूं।’’ मसीह, ‘उसके’ दुःखभोग का, संसार को एक व्यक्तिगत प्रस्तुतिकरण किये जाने का इच्छुक है। और जिस तरीके से ‘वह’ स्वयँ को संसार के लिए एक दुःख भोगनेवाले के रूप में, संसार को प्रस्तुत करने का इच्छुक है, वो है ‘उसके’ लोगों के द्वारा जो, ‘उसके’ समान, संसार के लिए दुःख उठाने के इच्छुक हैं। ‘उसके’ क्लेष, हमारे क्लेशों में पूरे होते हैं क्योंकि हमारे क्लेशों में संसार ‘उसके’ क्लेश देखता है, और उनका नियत प्रभाव पड़ता है। पापियों के लिए मसीह का दुःख उठाने वाला प्रेम, पापियों के लिए उसके लोगों के दुःख उठाते हुए प्रेम में, दिखता है।

मैं सोचता हूँ कि जो हम कुलुस्सियों 1: 24 में देखते हैं, वो मरकुस 8: 35 में यीशु के शब्दों को, जीना है, ‘‘जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, पर जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा।’’ उद्धार का पथ, ‘‘सुसमाचार के लिये अपना प्राण खोने’’ का पथ है। मुख्य बात ये है कि सुसमाचार को लोगों तक (कार्यालय के पार या समुद्र के पार) ले जाना साधारणतया त्याग और दुःखभोग की मांग करता है, जिन्दगी का एक खो देना या स्वयँ का इन्कार करना। मसीह चाहता है कि इसी तरीके से ‘उसके’ उद्धार देने वाले दुःखभोग, ‘उसके’ लोगों के दुःख उठाने के द्वारा, संसार को पहुँचाये जावें।

इस बुलाहट में पौलुस का आनन्द

और पौलुस कहता है कि वह इसमें आनन्दित होता है। पद 24:- ‘‘अब मैं उन दुःखों के कारण आनन्द करता हूं; जो तुम्हारे लिये उठाता हूं।’’ कलवरी की सड़क, एक आनन्दरहित सड़क नहीं है। ये एक कष्टमय रास्ता है, लेकिन गहरा सुख देने वाला है। जब हम, सुसमाचार-प्रचार की मुहिमों और सेवकाई और प्रेम के बलिदानों व दुःखभोग के ऊपर, आराम व सुरक्षा के अस्थाई सुखों का चुनाव करते हैं, हम आनन्द के विपरीत चुनाव करते हैं। हम टूटे हुए हौदों का चुनाव करते हैं जो अपने में कोई जल नहीं रख सकते और जल के ऐसे सोते का तिरस्कार करते हैं जिसका जल कभी नहीं सूखता (यशायाह 58: 11)।

संसार में सबसे सुखी लोग वे लोग हैं जो अपने अन्दर मसीह के भेद को, जो महिमा की आशा है, जानते हैं जो उनकी गहरी लालसा को सन्तुष्ट करते हुए और अपने स्वयँ के दुःख उठाने के द्वारा, मसीह के क्लेशों को संसार तक पहुँचाने के लिए, उन्हें स्वतंत्र करता है।

इस मूल-पाठ में परमेश्वर हमें बुला रहा है कि सुसमाचार की ख़ातिर जियें और इसे दुःख उठाने के द्वारा करें। मसीह ने दुःखभोग का चुनाव किया, ये उसे अचानक ही नहीं हो गया। ‘उसने’ इसे, कलीसिया का सृजन करने व उसे सिद्ध करने के, मार्ग के रूप में चुना। अब ‘वह’ हमें बुलाता है कि दुःखभोग का चुनाव करें। अर्थात्, ‘वह’ हमें बुलाता है कि अपना क्रूस उठायें और कलवरी की सड़क पर ‘उसका’ अनुसरण करें और अपने आप का इन्कार करें और संसार को ‘उसके’ क्लेश प्रस्तुत करने तथा कलीसिया की सेवकाई करने की ख़ातिर आत्मत्याग करें।

मैंने अभी-अभी ‘रोमानियाई’ पासवान् तथा मिशन अगुआ ‘जोसेफ़ टीसन’ से, इसे कहने का एक यादग़ार तरीका सुना है। उसने कहा, ‘‘मसीह का क्रूस प्रायश्चित के लिए था, हमारा प्रचारण के लिए है।’’ अर्थात्, मसीह ने उद्धार निष्पादित करने के लिए दुःख उठाया, हम उद्धार फैलाने के लिए दुःख उठाते हैं। और दूसरों के भले के लिए कष्ट उठाने की हमारी स्वीकृति, मसीह के क्लेशों को एक पूरा करना है क्योंकि यह उन्हें दूसरों तक पहुँचाती और उन्हें दृश्य बनाती है।

एक देशी भारतीय सुसमाचार-प्रचारक की कहानी

जब मई माह में मैं ‘मिशनस् बुक’ पर काम कर रहा था, मुझे जे. ओस्वाल्ड सैन्डर्स को बोलते हुए सुनने का एक सुअवसर मिला। उसके संदेश ने दुःख उठाने को गहराई से छुआ। वे 89 साल के हैं और अब भी सारे संसार में यात्रा करते और बोलते हैं। जब से वे 70 साल के हुए उन्होंने प्रति वर्ष एक पुस्तक लिखी है! मैं इसका उल्लेख केवल एक जिन्दगी के चरम अर्पण में उल्लसित होने के लिए कर रहा हूँ, जो 65 की उम्र से कब्र में जाने तक के आत्म-स्वार्थ में किनारा कर लेने के विचार के बिना, सुसमाचार के लिए उण्डेली गई है।

उन्होंने एक देशी मिशनरी की कहानी बतायी जो भारत में गाँव-गाँव नंगे पैर सुसमाचार का प्रचार करते हुए फिरा। उसकी कठिनाईयाँ बहुत सी थीं। कई मील की यात्रा के एक लम्बे दिन तथा बहुत हतोत्साहन के बाद वो किसी एक गांव में आया और सुसमाचार देने का प्रयास किया किन्तु उसे नगर से बाहर निकाल दिया गया और तिरस्कार किया गया। तो उदास होकर वह गाँव के छोर तक गया और एक पेड़ के नीचे लेट गया और थकावट से चूर होकर सो गया।

जब वह जागा, लोग उसे घेरे हुए थे, और सारा नगर उसके चारों ओर इकट्ठा हो गया था कि उसको बोलते हुए सुने। गाँव के मुखिया ने उसे समझाया कि जब वह सोया हुआ था तो वे उसे देखने आये। जब उन्होंने उसके छालों से भरे पैरों को देखा, उन्होंने ये निष्कर्ष निकाला कि वह एक पवित्र मनुष्य होना चाहिए, और ये कि वे दुष्ट थे कि उसका तिरस्कार किया। वे खेदित थे और वो संदेश सुनना चाहते थे जिसे उन तक लाने के लिए वह इतना दुःख उठाने को तैयार था।

अतः उस सुसमाचार-प्रचारक ने अपने छालों से भरे सुन्दर पैरों के द्वारा यीशु के क्लेशों को पूरा किया।

जोसेफ़ नाम के एक मसाई योद्धा की कहानी

एम्सटर्डम में बिली ग्राह्म एसोसियेशन द्वारा प्रायोजित, ‘इटीनरेन्ट इवान्जलिस्टस् कॉन्फ्रैंस’ में उपस्थित होने वालों में एक सर्वाधिक कम अपेक्षित व्यक्ति था, जोसेफ़ नाम का एक मसाई योद्धा। लेकिन उसकी कहानी ने, स्वयँ डा. ग्राह्म के साथ एक मुलाकात का अवसर जीत लिया। उसकी कहानी ‘माइकल कार्ड’1 के द्वारा बतायी जाती है।

एक दिन जोसेफ़, जो अफ्रीका की गर्म, गन्दी सड़कों में से एक पर चला जा रहा था, किसी से मिला जिसने उसके साथ यीशु मसीह का सुसमाचार बाँटा। वहीं और उसी समय उसने यीशु को अपना प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में ग्रहण किया। पवित्र आत्मा की सामर्थ ने उसके जीवन को बदलना आरम्भ कर दिया; वह ऐसी उत्तेजना और आनन्द से भर गया था कि सबसे पहिली चीज जो वह करना चाहता था वो ये कि अपने स्वयँ के गाँव लौटे और अपने स्थानीय कबीले के सदस्यों के साथ वही शुभ-समाचार बाँटे।

जोसेफ़ ने घर-घर जाना और हर जिस व्यक्ति से वो मिला, ये आशा रखते हुए कि उनके चेहरों का चमक उठना देखे जैसा कि उसका हुआ था, उसे यीशु के क्रूस (दुःखभोग!) के बारे में और उस उद्धार के बारे में बताना आरम्भ कर दिया, जिसका प्रस्ताव ये देता है। उसे अचभ्भा हुआ कि गाँववासियों ने न केवल परवाह नहीं की, बल्कि वे हिंसक हो उठे। गाँव के पुरुषों ने उसे पकड़ लिया और जमीन पर लिटा कर रखा और स्त्रियों ने उसे कंटीले तारों वाली लाठियों से पीटा। उसे गाँव से घसीट कर बाहर कर दिया गया और जंगल में अकेला मरने के लिए छोड़ दिया गया।

जोसेफ़ किसी तरह रेंगता हुआ जल के एक पोखरे तक पहुँचा, और वहाँ, कभी होश में और कभी बेहोशी में कई दिन बिताने के बाद, उठने की ताक़त पाया। उसे उस शत्रुतापूर्ण स्वागत के बारे में अचरज हुआ जो उसने उन लोगों से पाया जिन्हें वह अपने जन्म से जानता था। उसने विचार किया कि उसने अवश्य कुछ छोड़ दिया था या यीशु की कहानी त्रुटिपूर्ण ढंग से बताया। उस संदेश का अभ्यास करके जो उसने सर्वप्रथम सुना था, उसने निर्णय लिया कि वापिस जाये और एक बार और अपने विश्वास को बाँटे।

जोसेफ़ झोपडि़यों के वृत में लंगड़ाता हुआ चला और यीशु का प्रचार करना आरम्भ कर दिया। उसने पैरवी की ‘‘‘वह’ तुम्हारे लिए मर गया, ताकि तुम क्षमा पाओ और जीवते परमेश्वर को जान लो।’’ पुनः वह गाँव के पुरुषों द्वारा झपट कर पकड़ लिया गया और उसके घावों को, जो अभी चंगा होना आरम्भ ही हुए थे, पुनः उधेड़ते हुए स्त्रियों ने उसे पीटा। एक बार फिर उन्होंने बेहोशी की अवस्था में उसे घसीट कर गाँव से बाहर किया और मरने के लिए छोड़ दिया।

पहली पिटाई में जीवित रहना, सच में असाधारण था। दूसरी में जिन्दा रहना, एक चमत्कार था। पुनः, दिनों बाद, जोसेफ़ जंगल में जागा, घायल, निशानों से भरा — और वापिस जाने के लिए दृढ़-निश्चित। वह उसे छोटे गाँव में लौटा और इस बार, इससे पूर्व कि उसे अपना मुँह खोलने का अवसर मिले, उन्होंने उस पर हमला कर दिया। जबकि उन्होंने उसे तीसरी और सम्भवतः अन्तिम बार पीटा, उसने पुनः उनसे यीशु मसीह, प्रभु के बारे में कहा। इससे पूर्व कि वह बेहोश होता, अन्तिम चीज जो उसने देखी वो ये कि उन स्त्रियों ने जो उसे पीट रही थीं, रोना आरम्भ कर दिया।

इस बार अपने स्वयँ के बिस्तर उसकी आँखें खुलीं। वे लोग जिन्होंने उसे इतनी बुरी तरह पीटा था, अब उसकी जिन्दगी बचाने का प्रयास कर रहे थे, और उसे स्वस्थ करने के लिए सेवा-श्रुषुसा कर रहे थे। सारा गाँव मसीह के पास आ गया था।

ये उसका एक जीता-जागता उदाहरण है जो पौलुस का अर्थ है जब उसने कहा, ‘‘मैं मसीह के क्लेशों की घटी, उस की देह के लिये पूरी किए देता हूं।’’

ये जानना कि सुसमाचार की ख़ातिर मसीह हमें बलिदान के लिए बुलाता है, कुछ गहराई से स्वतंत्र करनेवाला और दृढ़ करनेवाला है। जब ये आता है ये हमें बिना सुरक्षा फेंक दिये जाने से, दृढ़ करता है। और जब प्रेम हमें संकेत से बुलाता है, यह हमें इसका चुनाव करने के लिए स्वतंत्र करता है। और यह हमें अमेरिकी समृद्धि के अविश्वसनीय प्रलोभन से स्वतंत्र करना आरम्भ करता है।

हैती में, त्यागपूर्ण दान करने की एक कहानी

अमेरिकियों के लिए ये लगभग असम्भव है कि उस विधवा की यीशु की प्रशंसा को सहन कर सकें जिसने ‘‘अपनी घटी में से अपनी सारी जीविका डाल दी (लूका 21: 4)। ‘उसने’ वास्तव में उसकी प्रशंसा की। ‘उसने’ उस पर गैरजिम्मेदार होने का दोष नहीं लगाया। ‘उसने’ परमेश्वर की ख़ातिर उसके त्याग की प्रशंसा की। इस आत्म-प्रेरणा को देखने के लिए, हमें अमेरिका छोड़कर कहीं और जाना पड़ सकता है। हैती से ‘स्टेनफोर्ड केली’ इसे उदाहरण देकर समझाते हैं।2

चर्च में एक धन्यवादी पर्व चल रहा था और प्रत्येक मसीही को एक प्रेम-भेंट लाने के लिए आमंत्रित किया गया था। हैती-वासी एक पुरुष की ओर से जिसका नाम एडमन्ड था, एक लिफाफे में 13 डॉलर रोकड़ थे। वह राशि वहाँ काम करने वाले एक व्यक्ति की तीन माह की आमदनी थी। ‘केली’ उन लोगों के समान ही चकित हुआ जो कि संयुक्त राज्य में रविवार की भेंट गिनते समय, 6,000 डॉलर रोकड़ की भेंट पायें। उन्होंने एडमन्ड के लिए चारों ओर देखा, किन्तु उसे नहीं पाया।

बाद में ‘केली’ उस से गाँव में मिले और उससे पूछा। उन्होंने एक विवरण के लिए उस पर दबाव डाला और पाया कि एडमन्ड ने सुसमाचार की ख़ातिर, परमेश्वर को 13 डॉलर की भेंट देने के लिए अपना घोड़ा बेच दिया था। लेकिन वह पर्व में क्यों नहीं आया था ? वह हिचकिचाया और उत्तर नहीं देना चाहता था।

अन्ततः एडमन्ड ने कहा, ‘‘मेरे पास पहनने के लिए कमीज नहीं थी।’’

जो हम इस सप्ताह देख रहे हैं वो ये कि परमेश्वर हमें दुःख उठाने के लिए तैयार होने को बुला रहा है … न केवल शुद्धिकरण और परिष्कृत होने के नैतिक परिणामों के कारण, और न केवल यीशु के साथ गहरी अंतरंगता में जाने के कारक व ‘उसे’ बेहतर जानने के कारण; किन्तु इसलिए भी कि मसीह के क्लेशों में जो घटी है, उन लोगों के द्वारा पूरी कर दी जावे जो इन क्लेशों को संसार के पास ले जाते हैं और मसीह के प्रेममय बलिदान को, ‘उसके’ लोगों के प्रेममय बलिदानों के द्वारा दिखाते हैं।

1 माइकल कार्ड, ‘‘वून्डेड इन द हाऊस ऑफ फ्रैन्ड्स,’’ वच्र्यू , मार्च/अप्रैल, 1991, पृ.सं. 28-29, 69।

2 नार्म लेविस, प्रायोरिटी वनः वॉट गॉड वान्ट्स (ऑरेन्ज, कैलिफोर्निया: प्रामिस पब्लिशिंग, 1988), पृ.सं. 120।