खोज:आनन्द! पाया:मसीह!

ब्लेस पास्कल एक फ्रांसिसी गणितशास्त्रीय विद्धान था जो 1662 में मर गया। जब तक कि वह 31 वर्ष का न हुआ, परमेश्वर से भागते रहने के बाद, नवम्बर 23, 1654 को, रात्रि 10:30 बजे, पास्कल परमेश्वर से मिला और गहराई से और अविचलित रूप से उसका मन यीशु मसीह की ओर बदल गया। उसने इसे एक चर्मपत्र के टुकड़े पर लिखा और अपने कोट के अन्दर सिल लिया, जो आठ साल बाद उसकी मृत्यु के उपरान्त पाया गया। इसमें लिखा था,

अनुग्रह का वर्ष 1654, सोमवार 23 नवम्बर, संत क्लेमैंट का पर्व … रात्रि में लगभग साढ़े दस बजे से मध्य रात्रि के लगभग आधा घण्टा बाद तक, आग। इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, याकूब का परमेश्वर, दार्शनिकों व विद्धानों का नहीं। निश्चित, हृदयस्पर्शी आनन्द, शान्ति। यीशु मसीह का परमेश्वर। यीशु मसीह का परमेश्वर। ‘‘मेरा परमेश्वर और तुम्हारा परमेश्वर।’’ … आनन्द, आनन्द, आनन्द, खुशी के आँसू … यीशु मसीह। यीशु मसीह। काश मैं ‘उससे’ कभी भी अलग न किया जाऊँ।

1968 में पास्कल और सी. एस. लेविस और जोनाथन एडवर्डस् और डान फुलर और बाइबिल ने, इन शब्दों के साथ मेरे जीवन को सदा के लिए बदल देने के लिए टीम बनाया, ‘‘आनन्द, आनन्द, आनन्द, खुशी के आँसू।’’ ये छोटी पुस्तिका, क्वेस्ट फॉर जॉय (आनन्द की खोज), जो आपके पास आराधना-पुस्तिका में है, उन दिनों में पैदा हुई। ये लगभग 15 वर्षों तक नहीं लिखी गई थी। लेकिन ये उस समय उत्पन्न हुई।

मुख-आवरण के अन्दर देखिये। यहाँ है, खुशी के लिए मेरे भय के विरोध में पास्कल का विस्फोट।

सभी मनुष्य खुशी या सुख की खोज करते हैं। ये बिना अपवाद के है। जो भी तरीके वे अपनाते हैं, वे सभी इस अन्त की ओर उन्मुख रहते हैं। कुछ लोगों के युद्ध में जाने का कारण, और अन्य लोगों का कि इससे बचकर रहें, भिन्न दृष्टिकोणों के साथ की गई, दोनों में वही इच्छा है। प्रत्येक मनुष्य की प्रत्येक क्रिया का यही अभिप्राय है, उनका भी जो स्वयँ को फांसी लगा लेते हैं।

मैंने संदेह किया कि ये सच है। लेकिन मैंने सदा भय खाया कि ये पाप था। यह कि सुखी रहने की चाह रखना एक नैतिक त्रुटि थी। ये कि अपने-आप का इन्कार करने का अर्थ था आनन्द का त्याग, अधिक बड़े आनन्दों के लिए छोटे आनन्दों का परित्याग करना नहीं। लेकिन तब परमेश्वर ने इन लेखकों के द्वारा सम्मिलित होकर काम किया कि मुझे बाइबिल पुनः पढ़ने के लिए उकसाये। कि इसे एक मौका दूँ कि इसका सच्चा अर्थ पा सकूँ। और वहाँ जो मैंने आनन्द के सम्बन्ध में पाया, उसने मुझे सदा के लिए बदल दिया। मैं तब से इसे समझने, इसे जीने और इसे सिखाने का प्रयास कर रहा हूँ। ये नया नहीं है। ये वहाँ हजारों वर्षों से रहा है।

आनन्द के बारे में बाइबिल क्या कहती है

आइये मैं आपको उसमें से कुछ चखाऊँ, कि आनन्द के बारे में बाइबिल क्या कहती है।

उस सब में जो ‘उसने’ सिखाया, यीशु का लक्ष्य था, ‘उसके’ लोगों का आनन्द।

यूहन्ना 15:11 मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।

आनन्द वो चीज है जिस से परमेश्वर हमें तब भरता है जब हम यीशु में विश्वास करते हैं।

रोमियों 15:13 परमेश्वर जो आशा का दाता है तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे।

परमेश्वर का राज्य, आनन्द है।

रोमियों 14:17 क्योंकि परमेश्वर का राज्य खानापीना नहीं; परन्तु धर्म और मिलाप और वह आनन्द है, जो पवित्र आत्मा से होता है।

आनन्द, हमारे अन्दर परमेश्वर के आत्मा का फल है।

गलतियों 5:22 पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल … है।

हर चीज जो प्रेरितों ने किया और लिखा, उसका लक्ष्य आनन्द है।

2 कुरिन्थियों 1:24 यह नहीं, कि हम विश्वास के विषय में तुम पर प्रभुता जताना चाहते हैं; परन्तु तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं।

एक मसीही बनना, एक ऐसे आनन्द को पाना है जो आपको हर चीज को त्यागने का इच्छुक बनाता है।

मत्ती 13:44 ‘‘स्वर्ग का राज्य खेत में छिपे हुए धन के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने पाकर छिपा दिया, और मारे आनन्द के जाकर और अपना सब कुछ बेचकर उस खेत को मोल लिया।’’

आनन्द, बाइबिल में परमेश्वर के वचन के द्वारा पोषित होता और बनाए रखा जाता है।

भजन 19:8 यहोवा के उपदेश सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर देते हैं।

वे जो मसीह में विश्वास करते हैं उनके लिए, आनन्द, सभी दुःख से आगे निकल जायेगा।

भजन 126:5 जो आंसू बहाते हुए बोते हैं, वे जयजयकार करते हुए (अथवा, आनन्द की चिल्लाहटों के साथ) लवने पाएंगे !

भजन 30:5ब कदाचित् रात को रोना पड़े, परन्तु सबेरे आनन्द पहुंचेगा।

परमेश्वर स्वयँ हमारा आनन्द है।

भजन 43:4 तब मैं परमेश्वर की वेदी के पास जाऊंगा, उस ईश्वर के पास जो मेरे अति आनन्द का कुंड है।

भजन 16:10 तू मुझे जीवन का रास्ता दिखाएगा; तेरे निकट आनन्द की भरपूरी है, तेरे दहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है।

परमेश्वर में आनन्द, सभी सांसारिक आनन्दों को पीछे कर देता है।

भजन 4:7 तू ने मेरे मन में उस से कहीं अधिक आनन्द भर दिया है, जो उनको अन्न और दाखमधु की बढ़ती से होती थी।

यदि आपका आनन्द परमेश्वर में है, कोई भी आप से आपका आनन्द नहीं ले सकता।

यूहन्ना 16:22 तुम्हें भी अब तो शोक है, परन्तु मैं तुम से फिर मिलूंगा और तुम्हारे मन में आनन्द होगा; और तुम्हारा आनन्द कोई तुम से छीन न लेगा।

परमेश्वर सभी जातियों और लोगों को उस आनन्द में जुड़ जाने के लिए बुलाता है जो वह उन सब को प्रस्तुत करता है, जो विश्वास करते हैं। कोई जातिवाद नहीं। कोई स्व-जाति-गर्व-प्रथा नहीं।

भजन 67:4 राज्य राज्य के लोग आनन्द करें, और जयजयकार करें।

भजन 66:1 हे सारी पृथ्वी के लोगो, परमेश्वर के लिए जयजयकार करो (आनन्द के साथ पुकारो)।

सम्पूर्ण मसीही संदेश, आरम्भ से अन्त तक, बड़े आनन्द का सुसमाचार है।

लूका 2:10 तब स्वर्गदूत ने उन से कहा, ‘‘मत डरो; क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगों के लिए होगा।

यशायाह 51:11 सो यहोवा के छुड़ाए हुए लोग लौटकर जयजयकार करते हुए सियोन में आएंगे, और उनके सिरों पर सदा का आनन्द होगा; वे हर्ष और आनन्द प्राप्त करेंगे, और शोक और सिसकियों का अन्त हो जाएगा।

जब हम मसीह से उसके द्वितीय आगमन पर मिलेंगे, हम उसके अविनाशी आनन्द में प्रवेश करेंगे।

मत्ती 25:23 उसके स्वामी ने उस से कहा, ‘‘धन्य हे अच्छे और विश्वासयोग्य दास, … अपने स्वामी के आनन्द में सम्भागी हो।’’

1968 में मेरे लिए शायद सबसे अधिक चैंकानेवाली बात थी, वो सरल और स्पष्ट प्रेक्षण कि परमेश्वर में इस आनन्द की आज्ञा दी गई है। आप इसे पुस्तिका के दूसरे पृष्ठ पर देखते हैं:-

भजन 37:4 यहोवा को अपने सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा।

भजन 33:1 हे धर्मियो यहोवा के कारण जयजयकार करो ! क्योंकि धर्मी लोगों को स्तुति करनी सोहती है।

भजन 32:11 हे धर्मियो यहोवा के कारण आनन्दित और मगन हो, और हे सब सीधे मनवालो आनन्द से जयजयकार करो !

इसकी आज्ञा दी गई है क्योंकि जो जोखि़म में है वो मात्र हमारा आनन्द नहीं है अपितु परमेश्वर की महिमा, परमेश्वर का सम्मान और प्रतिष्ठा। यदि हम परमेश्वर में आनन्दित नहीं होते - यदि परमेश्वर हमारा धन और हमारी प्रसन्नता और हमारा सन्तोष नहीं है, तब ‘उसका’ अनादर होता है। ‘उसकी’ महिमा का महत्व घटाया जाता है। ‘उसकी’ प्रतिष्ठा धूमिल की जाती है। इसलिये परमेश्वर हमारे आनन्द की आज्ञा देता है, हमारे भले और ‘उसकी’ महिमा, दोनों के लिए।

उस अन्वेषण ने मुझे मसीहियत का केन्द्रीय संदेश, सुसमाचार - यीशु मसीह का - शुभ समाचार, समझने में सहायता की। और ये छोटी पुस्तिका क्वेस्ट फॉर जॉय (आनन्द की खोज) वही करने के लिए है:मसीही सुसमाचार का सारांश देने और ये कैसे पापियों को बचाता है और सनातन का आनन्द देता है।

सागर को वर्षा की एक बूंद में रखने का प्रयास करना, ख़तरनाक है - परमेश्वर की धार्मिकता और प्रेम को पुस्तिका में रखने का प्रयास करना। लेकिन मैं सोचता हूँ कि यह केवल ख़तरनाक नहीं है, ये प्रेममय है, और ये आवश्यक है। परमेश्वर ने यह एक बार किया। ‘उसने’ ‘उसके’ असीम स्वयँ को एक अकेले मानवजीवधारी, यीशु मसीह में रख दिया (कुलुस्सियों 2:9)। यह सागर को वर्षा की एक बूंद में रखने से भी अधिक विस्मयकारी था। और यह प्रेम था। चूंकि, ‘वह’ मानव और साथ ही परमेश्वर था, ‘वह’ हमारे अपने पापों के लिए मर सका। किन्तु अनेकों ने ‘उस’ में परमेश्वर को नहीं पहचाना। और मैं ये जोखि़म उठाता हूँ कि अनेकों इस छोटी पुस्तिका में सुसमाचार को नहीं देख रहे हैं। और मेरा जोखि़म बड़ा है क्योंकि मैं परमेश्वर नहीं हूँ और मैं अचूक नहीं हूँ। लेकिन मैं आपसे प्रेम करता हूँ और चाहता हूँ कि आप देखें कि परमेश्वर ने आपको बचाने के लिए क्या किया है।

तो क्या आप मेरे साथ इस पुस्तिका में होकर चलेंगे ? यदि आप यीशु में एक विश्वासी नहीं हैं, केवल इसका प्रयास कीजिये कि परमेश्वर जो स्वयँ के और आपके बारे में दिखाये, उसके प्रति खुले रहें, और ‘उससे’ मांगिये कि जो सत्य है उसे आपको पुष्ट करे और जो नहीं है उससे आपकी रक्षा करे। यदि आप एक विश्वासी हैं, जिस पर आपने अपने जीवन को निर्मित किया है, उसे तरोताजा कीजिये, और यदि परमेश्वर इसे उपयोग करने में अगुवाई करता है, इस छोटी पुस्तिका के द्वारा संसार में सर्वाधिक उत्तम समाचार बांटने की तैयारी कीजिये। और ऐसा हो कि इस ईस्टर रविवार पर, जी उठा हुआ मसीह सम्मानित हो !

बाइबिल-शास्त्रीय प्रथम दो सच्चाईयों पर एक-साथ विचार कीजिये।

बाइबिल-शास्त्रीय सत्य - 1:- परमेश्वर ने हमें ‘उसकी’ महिमा के लिये सृजा।

‘‘मेरे पुत्रों को दूर से और मेरी पुत्रियों को पृथ्वी की छोर से ले आओ … जिसको मैंने अपनी महिमा के लिये सृजा’’ (यशायाह 43:6-7)।

बाइबिल-शास्त्रीय सत्य - 2:- प्रत्येक मानव को परमेश्वर की महिमा के लिए जीना चाहिए।

‘‘सो तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ; चाहे जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करो’’ (1 कुरिन्थियों 10:31)।

ये लगभग एक समान हैं, क्या नहीं हैं ? अन्तर क्या है ? इससे क्यों अन्तर पड़ता है कि दो पृष्ठ हों बनिस्बत कि दोनों को एक में समेट दिया जावे ? यह अन्तर ये है कि सत्य-1, परमेश्वर की योजना की बात करता है, और सत्य 2, हमारे कर्तव्य की बात करता है। उन्हें अलग रखना और उन्हें इस क्रम में रखना, वास्तविकता के बारे में कुछ बहुत निर्णायक कहता है। यदि हम इसे न सुनें, सम्भवतः हम सुसमाचार को बहुमूल्य समाचार के रूप में नहीं देखेंगे जैसा कि वो है। मसीह की वीभत्स मृत्यु, सम्भवतः एक अतिरेक प्रतिक्रिया प्रतीत होगी। निर्णायक बिन्दु ये है कि परमेश्वर सब चीजों का उद्गम और सभी चीजों का पैमाना और सभी चीजों का लक्ष्य है। और विश्व, पूरा ही परमेश्वर के विषय में है।

मेरी सात-साल-की तलीथा और मैं, शनिवार के हमारे तय कार्यक्रम पर कल, ‘लेक स्ट्रीट’ पर स्थित ‘अरबाई’ में दोपहर के भोजन के लिए गये। जैसे ही हम ‘हियावाथा’ से आगे बढ़े, हमारे सामने एक नीली वैन (कार) थी, और मैंने तलीथा से कहा :- ‘‘मैं उस बम्पर पर लगे स्टिकर को पसन्द नहीं करता।’’ जहाँ वो थी वहाँ से वह इसे पढ़ नहीं सकी, इस कारण मैंने उसके लिए पढ़ा:- ‘‘इट्स आलॅ अबाउट मी’’ (ये पूरा ही मेरे विषय में है)। बड़ा ‘‘एम।’’ इसी कारण यीशु का सुसमाचार अनेकों के लिए समझना इतना कठिन है। यह वास्तविकता के एक बहुत भिन्न दर्शन में जड़ पकड़े है। ये सब हमारे विषय में नहीं है। ये सब परमेश्वर के विषय में है।

परमेश्वर ने हमारी बनावट की कि उसकी’ महिमा के लिए जीएँ। ये बाइबिल में सभी जगह है। और इसलिए ये हमारे जीवन की बुलाहट और हमारा कर्तव्य है कि ‘उसकी’ महिमा के लिए जीएँ। स्वयँ को जांचिये:- क्या परमेश्वर का प्रेम आपके लिए ये मायने रखता है कि ‘वह’ आपको केन्द्र बनाता है, अथवा इसका अर्थ है कि ‘वह’ आपको चिरस्थायी आनन्द देता है - ‘उसके’ स्वयँ की बड़ी कीमत पर - ‘उसे’ केन्द्र बनाने के द्वारा ? वही है जिसके लिए आपको बनाया गया था। वो आपका आनन्द होगा और वो ‘उसकी’ महिमा होगी।

इसके बाद बाइबिल-शास्त्रीय दो अगली सच्चाईयों पर एक-साथ विचार कीजिये।

बाइबिल-शास्त्रीय सत्य - 3:- जैसा हमें करना चाहिए, परमेश्वर को महिमित करने में हम सब असफल रहे हैं

‘‘इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं’’ (रोमियों 3:23)।

बाइबिल-शास्त्रीय सत्य - 4:- हम सब परमेश्वर की न्यायोचित दण्डाज्ञा के आधीन हैं

‘‘पाप की मजदूरी तो मृत्यु है …’’ (रोमियों 6:23)।

ये, भी, एक पृष्ठ पर संयुक्त किये जा सकते थे, क्या नहीं, ठीक प्रथम दो के समान ? हम कह सकते थे, ‘‘क्योंकि हम सब पापी हैं, हम परमेश्वर की दण्डाज्ञा की पात्रता रखते हैं - हम सज़ा के योग्य हैं।’’ लेकिन कुछ महत्वपूर्ण खो जायेगा यदि हम इसे उस तरह से कहें । क्या खो जायेगा, वो सत्य - 3 में बल दिया गया है, कि पाप मुख्यतः वो नहीं है जिस तरह से हमने लोगों से बर्ताव किया है, अपितु जिस तरह से हमने परमेश्वर से बर्ताव किया है।

बम्पर पर चिपका वो स्टिकर गलत होगा, यदि इसका अर्थ था, ‘‘मेरा पाप पूरा ही मेरे विषय में है’’ तो भी। परमेश्वर, सृष्टि में अपनी स्वयँ की योजना का केन्द्र है। परमेश्वर, जीवधारियों के रूप में हमारे कर्तव्य का केन्द्र है। और पापी होने का क्या अर्थ है, परमेश्वर इसका केन्द्र है:इसका अर्थ है, जैसा रोमियों 3:23 कहता है, परमेश्वर की महिमा से रहित हो जाना, अर्थात्, परमेश्वर की महानता से हटकर किसी और महानता को चुनना और आनन्द उठाना। पाप, सबसे प्रथम और सर्वाधिक इस बारे में है कि हम परमेश्वर से कैसा बर्ताव करते हैं, अन्य लोगों से नहीं।

हम नरक की भयानकता या मसीह के रक्तरंजित क्रूस की सार्थकता कभी नहीं समझेंगे, यदि हम पाप के बोझ को, परमेश्वर के अपमान के रूप में बोध नहीं करते। पाप, मात्र मनुष्य का मनुष्य से दुव्र्यवहार करना नहीं है। यह मुख्यतः मनुष्य द्वारा परमेश्वर से दुव्र्यवहार है। मनुष्य द्वारा परमेश्वर का तिरस्कार करना। मनुष्य द्वारा परमेश्वर को अनदेखा करना। मनुष्य द्वारा परमेश्वर को छोड़कर अन्य चीजों को प्रमुखता देना। और इस प्रकार, मनुष्य द्वारा परमेश्वर के महत्व को कम आंकना। ये विश्व में परम घोर अपमान है। हमें इसकी अनुभूति करना चाहिए यदि सत्य - 4 का भयंकर दण्ड अन्यायपूर्ण प्रतीत नहीं होने जा रहा है।

हम सब ने परमेश्वर से अवज्ञा के साथ बर्ताव किया है, और उसका क्रोध हम पर आ रहा है। ये हमारी सबसे बड़ी समस्या है। अर्थव्यवस्था से बड़ी। इराक़ या उत्तरी कोरिया के साथ अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों से भी बड़ी। विवाह की कठिनाईयों या दर्दनाक कैंसर से भी बड़ी। मसीही सुसमाचार का यही आशय है, इलाज, प्रथम और मुख्यतः। हम परमेश्वर के न्यायोचित दण्ड से कैसे बच सकते हैं ? सुसमाचार के कई अन्य अद्भुत प्रभाव हैं ! लेकिन ये महत्वपूर्ण है, और अन्य इस पर आधारित हैं।

अब, सुसमाचार। आइये हम बाइबिल-शास्त्रीय अंतिम दो सच्चाईयों पर एक-साथ विचार करें।

बाइबिल-शास्त्रीय सत्य - 5:- परमेश्वर ने, सनातन जीवन और आनन्द प्रदान करने, अपने एकमात्र पुत्र को भेजा।

‘‘यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है:मसीह यीशु पापियों का उद्धार करने के लिये जगत में आया …’’ (1तीमुथियुस 1:15)।

बाइबिल-शास्त्रीय सत्य - 6:- मसीह की मृत्यु के द्वारा खरीदे गए लाभ, उनके हैं जो पश्चाताप् करते और ‘उस’ पर विश्वास करते हैं।

‘‘इसलिये, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं’’ (प्रेरित 3:19)।

‘‘प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर तो तू … उद्धार पायेगा (प्रेरित 16:31)।

और पुनः, हम इन दो पृष्ठों को संयुक्त कर सकते थे। हम कह सकते थे:- पाप और दोष और दण्डाज्ञा का क्या इलाज है ? उत्तर:- ‘‘प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर तो तू उद्धार पायेगा।’’ लेकिन वो गहराई से अपूर्ण उत्तर होगा ! यदि आप डूब रहे हैं, इलाज, सहायता के लिए आपका चिल्लाना मात्र नहीं है; ये है जीवन-रक्षकगण और बचाव की रस्सियाँ (और यदि आवश्यक हो) कृत्रिम श्वसन। सहायता के लिए चिल्लाना आपको मात्र बचाव के कार्य से जोड़ता है। यदि आपको हृदयाघात हुआ है, तो 911 पर फोन करना आपकी मुख्य चिकित्सा नहीं है। ये है, एम्बुलैन्स और उप-स्वास्थ्यकर्मी और सीपी. आर. और नर्सें और सर्जन और दवाईयाँ। 911 पर फोन करना, बचाव कार्य से मात्र संबंध है।

अपने पाप से पश्चाताप् करना और यीशु पर विश्वास करना (सत्य- 6), के साथ इसी तरह है। मसीह में परमेश्वर के बचाने वाले कार्य के साथ, वो आपका संबंधन है। मसीह ने हमें बचाने के लिए 2000 साल पूर्व कुछ किया। ‘वह’ आया, ‘वह’ परमेश्वर की पुत्र के रूप में एक सिद्ध जीवन जिआ। और ‘वह’ उन सब के प्रतिस्थापन के रूप में मर गया जो ‘उस’ पर विश्वास करेंगे। 1पतरस 3:18, ‘‘मसीह ने भी, अर्थात् अधर्मियों के लिये धर्मी ने पापों के कारण एक बार दुःख उठाया, ताकि हमें परमेश्वर के पास पहुंचाए।’’ हमारा विश्वास, हमारे उद्धार के लिए आधार नहीं है। ये हमें हमारे उद्धार के आधार से जोड़ता है। मसीह, हमारे उद्धार का आधार है।

हमारे दोषी ठहराये जाने के स्थान पर, ‘उसकी’ मृत्यु और दोषी ठहराया जाना; हमारे पाप और अपूर्णता के स्थान पर उसकी सिद्ध धार्मिकता। और हमारे उद्धार को वैध ठहराने और सुरक्षित करने और सदा-सदा के लिए हमारे आनन्द के लिए ‘उसका’ पुनरुत्थान। बाइबिल कहती है, ‘‘यदि मसीह नहीं जी उठा, तो तुम्हारा विश्वास व्यर्थ है; और तुम अब तक अपने पापों में फंसे हो … परन्तु सचमुच मसीह मुर्दों में से जी उठा है, और जो सो गए हैं, उन में पहिला फल हुआ’’ (1 कुरिन्थियों 15:17, 20)। चूंकि ‘वह’ हमारे लिए मरा और पुनः जी उठा, सभी जो ‘उस’ पर विश्वास करते हैं, उनके पास अनन्त जीवन और सदा-बढ़ता-हुआ आनन्द है।

अपने जीवन के विषय में उस पर भरोसा कीजिये। आपके विवाह या कुंवारेपन के विषय में उस पर भरोसा रखिये। आपके व्यापार और आर्थिक स्थिति के विषय में ‘उस’ पर भरोसा कीजिये। आपके स्वास्थ्य के विषय में उस पर भरोसा कीजिये। और, इन सब के नीचे, अपने पाप और अपने दोष और अपने भय के विषय में ‘उस’ पर भरोसा कीजिये। बचाने के लिए ‘उसने’ पहिले की काम कर दिया है। ये पूरा हुआ है। ‘वह’ मर गया है और ‘वह’ जी उठा है। और ‘उस’ में विश्वास के द्वारा ‘उस’ का उद्धार आप का हो सकता है। और जब ये होता है, तब वो परिपूर्ण होता है कि आपको क्यों बनाया गया: आपके आनन्द में परमेश्वर की महिमा सदा-सर्वदा प्रतिबिम्बित हो।