परमेश्वर ने भक्तिहीनों को धर्मी ठहराया

पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की वह धार्मिकता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्था और भविष्यवक्ता देते हैं। अर्थात् परमेश्वर की वह धार्मिकता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये है ; क्योंकि कुछ भेद नहीं। इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं। परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। उसे परमेश्वर ने उसके लहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए, और जिन की परमेश्वर ने अपनी सहन- शीलता से आनाकानी की ; उन के विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे। वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो ; कि जिस से वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो। तो घमण्ड करना कहाँ रहा ? उस की तो जगह ही नहीं: कौन सी व्यवस्था के कारण से? क्या कर्मों की व्यवस्था से? नहीं, वरन् विश्वास की व्यवस्था के कारण। इसलिये हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं, कि मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है। क्या परमेश्वर केवल यहूदियों ही का है ? क्या अन्यजातियों का नहीं ? हाँ, अन्यजातियों का भी है। क्योंकि एक ही परमेश्वर है, जो खतनावालों को विश्वास से और खतनारहितों को भी विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराएगा। तो क्या हम व्यवस्था को विश्वास के द्वारा व्यर्थ ठहराते हैं ? कदापि नहीं ; वरन् व्यवस्था को स्थिर करते हैं। सो हम क्या कहें, कि हमारे शारीरिक पिता इब्राहीम को क्या प्राप्त हुआ ? क्योंकि यदि इब्राहीम कामों से धर्मी ठहराया जाता, तो उसे घमण्ड करने की जगह होती, परन्तु परमेश्वर के निकट नहीं। पवित्र षास्त्र क्या कहता है ? यह कि ‘‘इब्राहीम ने परमेश्वर पर विश्वास किया, और यह उसके लिये धार्मिकता गिना गया।’’ काम करने वाले की मजदूरी देना दान नहीं, परन्तु हक्क समझा जाता है। परन्तु जो काम नहीं करता वरन् भक्तिहीन के धर्मी ठहरानेवाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना जाता है। जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाऊद भी धन्य कहता है कि: ‘‘धन्य वे हैं, जिन के अधर्म क्षमा हुए, और जिन के पाप ढाँपे गए। धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।’’

परमेश्वर की धार्मिकता प्रमाणित किया जाना

विगत सप्ताह मैंने ये दिखाने का प्रयास किया कि गहनतम् समस्या जो मसीह की मृत्यु के द्वारा हल हो रही है, वो समस्या थी कि इतने सारे पापों को, जो दण्डाज्ञा की पात्रता रखते थे, अनदेखा कर देने में, परमेश्वर स्वयं अधार्मिक प्रतीत होता था। सम्पूर्ण पुराना-नियम, इस सत्य का साक्षी है कि परमेश्वर ‘‘कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, हजारों पीढि़यों तक निरन्तर करुणा करने वाला, और अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करने वाला है’’ (निर्गमन 34: 6-7)।

और मैंने कहा था कि हम वास्तव में इस समस्या की अनुभूति कभी नहीं करेंगे जब तक कि पाप और धार्मिकता के बारे में हमारे सोचने के ढंग में, हम परमेश्वर-केन्द्रित न हो जाए ।

पाप (रोमियों 3: 23), प्राथमिक तौर पर मनुष्य के विरोध में अपराध नहीं है। ये परमेश्वर के विरोध में एक अपराध है। ‘‘सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।’’ पाप करना, सदैव, संसार में किसी चीज को परमेश्वर से बढ़कर आँकना/महत्व देना है। यह ‘उसकी’ महिमा का महत्व कम करना है। यह ‘उसके’ नाम का अनादर करना है।

किन्तु जो सर्वथा उचित है वह करने की ‘उसकी’ वचनबद्धता, परमेश्वर की धार्मिकता है--यथा, ‘उसके’ नाम के सम्मान को और ‘उसकी’ महिमा के उत्कर्ष को ऊँचा उठाये रखना। धार्मिकता, पाप के विपरीत है। पाप, परमेश्वर के विरोध में चुनाव करके ‘उसके’ महत्व को कम करता है; धार्मिकता, परमेश्वर के पक्ष में चुनाव करके, ‘उसके’ महत्व को बढ़ाता है।

इसलिए जब परमेश्वर, पाप को अनदेखा करता और पापियों को एक न्यायपूर्ण दण्ड के बिना जाने देता है, ‘वह’ अधार्मिक प्रतीत होता है। ‘वह’ यह कहता हुआ प्रतीत होता है: मेरे महत्व (या उत्कर्ष) का तिरस्कार करना महत्वपूर्ण नहीं है; मेरी महिमा का महत्व घटाना महत्वहीन है; मेरे नाम का अपमान करने से कोई अन्तर नहीं पड़ता है। यदि ये सच होता, परमेश्वर अधार्मिक होता। और हम बिना आशा के होते।

किन्तु परमेश्वर ने इसे सच नहीं होने दिया। ‘उसने’ अपने पुत्र, यीशु मसीह को आगे लाया, ताकि मृत्यु के द्वारा ‘वह’ ये प्रदर्शित कर सके कि परमेश्वर धार्मिक है। परमेश्वर के पुत्र की मृत्यु, उस मूल्य की उध्देषणा है जो परमेश्वर अपनी महिमा के ऊपर रखता है, और वो घृणा जो ‘उसे’ पाप से है, और वो प्रेम जो ‘उसे’ पापियों के लिए है।

भक्तिहीनों का धर्मी ठहराया जाना

पाप को अनदेखा करना, जिसने परमेश्वर को अधार्मिक प्रतीत होता दिखाया, के लिए अन्य शब्द है ‘‘धर्मी ठहराना’’ -- भक्तिहीन का धर्मी ठहराया जाना (रोमियों 4: 5)। यही वो है जिस के बारे में आज मैं बात करना चाहता हूँ। और मात्र ये तथ्य नहीं कि परमेश्वर ने उन पापों को अनदेखा किया जो बहुत समय पहले किये गए थे, अपितु ‘उसने’ अपने लोगों के उन पापों को अनदेखा किया जो हमने बीते हुए कल किये और आज सुबह किये और आने वाले कल करेंगे।

पद 26 कहता है कि जब यीशु मरा, दो बातें हुईं, मात्र एक नहीं। ‘‘ये (मसीह की मृत्यु) यह प्रमाणित करने के लिए थी कि परमेश्वर स्वयं धार्मिक है और यह कि ‘वह’ उसे धर्मी ठहराता है जिसका विश्वास यीशु में है।’’ परमेश्वर को न्यायी दिखाया गया है, और विश्वासी धर्मी ठहराये जाते हैं।

अब, मैं विश्वास के आत्मगत कार्य पर, जिसके द्वारा हम पापमोचन प्राप्त करते हैं, आज ध्यान केन्द्रित नहीं करना चाहता। मैं धर्मी ठहराने में, परमेश्वर के वस्तुगत (यथार्थ) कार्य पर ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूँ। क्योंकि मैं सोचता हूँ कि यदि हम इस महान कार्य पर ध्यान केन्द्रित करें--उसपर जो परमेश्वर करता है, बनिस्बत इसके कि हम क्या करते हैं--हम इसे ग्रहण करने के लिए अपने हृदय में विश्वास को उमण्ड़ता हुआ पायेंगे।

आइये हम उन चार चीजों को देखें कि धर्मी ठहराये जाने का उन के लिए क्या अर्थ है, जो यीशु में विश्वास करने के द्वारा वरदान/उपहार पाते हैं।

1) हम, हमारे सभी पापों के लिए क्षमा किये गए

प्रथम, धर्मी ठहराये जाने का अर्थ है, हमें हमारे सभी पापों के लिए क्षमा किया जाना।

सभी पाप--विगत, वर्तमान, और भविष्य

रोमियों 4: 5-8 को देखिये, जहाँ पौलुस पुराना नियम को उद्धृत करके धर्मी ठहराये जाने के सत्य को खोल रहा है।

परन्तु जो काम नहीं करता वरन भक्तिहीन के धर्मी ठहरानेवाले पर विश्वास करता है, उसका विश्वास उसके लिये धार्मिकता गिना जाता है। 6 जिसे परमेश्वर बिना कर्मों के धर्मी ठहराता है, उसे दाऊद भी धन्य कहता है: 7 कि ‘‘धन्य वे हैं, जिन के अधर्म क्षमा हुए, और जिन के पाप ढांपे गए। 8 धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।’’

यह धर्मी ठहराये जाने के ठीक मर्म में है। पद 7-8 में से इन तीन महान वाक्यांशों को अपने मन में पोषित कीजियेः ‘‘अधर्म क्षमा हुए,’’ ‘‘पाप ढाँपे गए,’’ ‘‘परमेश्वर पापी न ठहराए।’’

ध्यान दीजिये कि पौलुस क्षमा को उन पापों तक सीमित नहीं करता, जो हमने विश्वास करने से पूर्व किये--मानो कि आप के भूतकाल के पाप क्षमा किये गए किन्तु आपका भविष्य पकड़े जाने के लिए है। उस प्रकार की कोई सीमा व्यक्त नहीं की गई है। धर्मी ठहराये जाने की आशीष यह है कि अधर्म क्षमा हुए और पाप ढाँपे गए हैं और ‘‘परमेश्वर हमारे विरोध में पाप नहीं गिनेगा।’’ ये अति सुनिश्चित और अप्रतिबन्धित रूप से कहा गया है।

क्योंकि मसीह ने हमारे पाप और दोष-भाव को उठाया

‘वह’ वो कैसे कर सकता है ? रोमियों 3: 24 कहता है कि हम धर्मी ठहराये गए ‘‘उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है।’’ शब्द ‘‘छुटकारे’’ का अर्थ है, किसी दासत्व या कैद से स्वतंत्र किया जाना या रिहा किया जाना या बन्धनमुक्त किया जाना। अतः मुख्य बात यह है कि जब यीशु हमारे लिए मरा, ‘उसने’ हमें हमारे पापों की कैद से स्वतंत्र किया। ‘उसने’ दोष के बन्धनों को तोड़ दिया जो हमें दण्डाज्ञा के आधीन लाता है।

गलतियों 3: 13 में पौलुस कहता है, कि ‘‘मसीह ने जो हमारे लिये शापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के शाप से छुड़ाया . . . ।’’ पतरस कहता है (1 पतरस 2: 24 में ), ‘‘वह आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिए हुए क्रूस पर चढ़ गया।’’ यशायाह ने कहा, ‘‘यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया’’ (53: 6)।

अतः धर्मी ठहराया जाना--पापों की क्षमा--हमें मिलती है, क्योंकि मसीह ने हमारे पापों को उठा लिया, हमारे शाप को उठा लिया, हमारे दोष को उठा लिया और इस तरह हमें दण्डाज्ञा से मुक्त किया। इसका यही अर्थ है कि ‘‘उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है’’ हम धर्मी ठहराये गए हैं। हम उनके दण्ड से रिहा कर दिये गए हैं क्योंकि ‘उसने’ उनका दण्ड उठा लिया है।

मसीह ने केवल एक बार दुःख उठाया

और इसे चिन्हित कीजिये: ‘उसने’ केवल एक बार दुःख उठाया। ‘वह’ बारम्बार प्रभु-भोज में अथवा साम्हिक प्रार्थना में, बलिदान नहीं किया जाता, मानो कि ‘उसका’ प्रथम बलिदान अपर्याप्त था। इब्रानियों 9: 26 कहता है कि ‘‘अब युग के अन्त में वह (मसीह) एक बार प्रगट हुआ है, ताकि अपने ही बलिदान के द्वारा पाप को दूर कर दे’’ (तुलना कीजिये, इब्रानियों 7:27)। और पुनः 9: 12 में यह कहता है, ‘‘और बकरों और बछड़ों के लहु के द्वारा नहीं, पर अपने ही लोहु के द्वारा एक ही बार पवित्र स्थान में प्रवेश किया, और अनन्त छुटकारा प्राप्त किया।’’ परमेश्वर ने हमारे लिए जो क्रूस पर किया, उसकी महिमा को समझने के लिए, यह पूर्ण रूप से निर्णायक है।

क्या आप, मसीह की सदैव के लिए एक बार की मृत्यु और आपके पापों तथा परमेश्वर के सब लोगों के पापों की समग्रता (कुल जोड़) के मध्य, संबंध देखते हैं ? यह कुछ पाप, या किसी विशेष प्रकार के पाप, या विगत पाप मात्र नहीं हैं, वरन सारे पाप तथा पूर्णतया पाप हैं, जिन्हें मसीह ने अपने सब लोगों के लिए दूर कर दिया है।

अतः धर्मी ठहराये जाने की क्षमा, हमारे विगत, वर्तमान, और भविष्य के सभी पापों की क्षमा है। यही हुआ जब मसीह मरा।

2) एक परायी धार्मिकता से धर्मी गिने गए

धर्मी ठहराये जाने का अर्थ है, परमेश्वर की धार्मिकता के द्वारा धर्मी गिना जाना जो हमें पहना दी गई है, या ऐसे गिनी गई मानो हमारी हो।

मात्र क्षमा करके, परमेश्वर के सामने बिना किसी स्थिति के छोड़ नहीं दिया गया। परमेश्वर न केवल हमारे पापों को दूर कर देता है, अपितु हमें धर्मी भी गिनता है और अपने साथ हमें सही स्थिति में खड़ा करता है। ‘वह’ हमें अपनी स्वयं की धार्मिकता देता है।

यीशु में विश्वास के द्वारा परमेश्वर की धार्मिकता

21-22 आयतों को देखिये। पौलुस ने अभी 20 पद में कहा कि कोई भी मनुष्य व्यवस्था के कामों से कभी भी धर्मी नहीं ठहर सकता था। कर्मकाण्डवादी प्रतिस्पर्धाओं (प्रयासों) के आधार पर आप परमेश्वर के समक्ष कभी भी उचित स्थिति नहीं पा सकते। तब वह कहता है (यह दिखाने के लिए कि धार्मिकता कैसे प्राप्त की जाती है), ‘‘पर अब बिना व्यवस्था परमेश्वर की वह धार्मिकता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्था और भविष्यवक्ता देते हैं। 22) अर्थात् परमेश्वर की वह धार्मिकता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करने वालों के लिये है।’’

अतः यद्यपि व्यवस्था के कामों से कोई भी व्यक्ति धर्मी नहीं ठहराया जा सकता, परमेश्वर की एक धार्मिकता है जो आप यीशु मसीह में विश्वास करने के द्वारा पा सकते हैं। मेरा यही अर्थ है, जब मैं कहता हूँ कि धर्मी ठहराये जाने का अर्थ है, धर्मी गिना जाना या माना जाना। विश्वास के द्वारा, परमेश्वर की धार्मिकता हमारी गिनी या मानी जाती है।

जैसा कि हमने पिछले सप्ताह पद 25-26 में देखा, जब यीशु, परमेश्वर की धार्मिकता को प्रदर्शित करने के लिए मरता है, ‘वह’ उस धार्मिकता को पापियों के लिए एक वरदान/उपहार के रूप में उपलब्ध बनाता है। यदि मसीह यह प्रदर्शित करने के लिए न मरा होता कि पापों को अनदेखा करने में परमेश्वर धार्मिक है, तो मात्र वो तरीका जिससे परमेश्वर की धार्मिकता स्वयं को प्रगट करती, वो होता हमें दण्ड देकर। किन्तु मसीह निश्चित ही मर गया। और इस तरह परमेश्वर की धार्मिकता अब एक दण्डाज्ञा नहीं है वरन्, उन सब के लिए जीवन का एक वरदान है, जो विश्वास करते हैं।

2 कुरिन्थियों 5: 21

2 कुरिन्थियों 5: 21, इस ओढ़ायी (या पहनायी)जाने वाली धार्मिकता के महान वरदान के बारे में सर्वाधिक श्वासरोधक अनुच्छेदों में से एक है। ‘‘जो पाप से अज्ञात था, उसी (मसीह) को उस (परमेश्वर) ने हमारे लिये पाप ठहराया, कि हम उस में होकर परमेश्वर की धार्मिकता बन जाएँ।’’

मसीह पाप से अज्ञात था। ‘वह’ एक सिद्ध मनुष्य था। ‘उसने’ कभी पाप नहीं किया। ‘वह’ अपने पूरे जीवन में और अपनी मृत्यु में , परमेश्वर की महिमा के लिए सिद्धता के साथ जीवित रहा। ‘वह’ धार्मिक था। दूसरी ओर, हम सब ने पाप किया। हमने परमेश्वर की महिमा का अनादर किया है। हम अधर्मी हैं।

लेकिन परमेश्वर, जिसने हमें जगत की उत्पत्ति से पहले मसीह में चुन लिया, यह ठहराया कि एक विस्मयकारी विनिमय होगा: ‘वह’ मसीह को पाप--एक पापी नहीं, किन्तु पाप--हमारा पाप, हमारा दोष, हमारा दण्ड, परमेश्वर से हमारा परायापन या असम्बद्धता, हमारी अधार्मिकता बनायेगा। और ‘वह’ परमेश्वर की धार्मिकता लेगा, वो जिसे मसीह ने अद्भुत रूप से प्रमाणित किया था, और हमसे उसे उठावायेगा व हमें पहनायेगा व हमें इसका स्वामी बनायेगा, वैसे ही, जिस तरह मसीह ने हमारे पाप के साथ किया।

यहाँ मुख्य बिन्दु ये नहीं है कि मसीह नीतिगत रूप से एक पापी और हम नीतिगत रूप से धर्मी बन जाते हैं। मुख्य बात ये है कि मसीह एक पराया पाप उठाता है और इसके लिए दुःख उठाता है, और हम एक परायी धार्मिकता उठाते हैं और इसके द्वारा जीवित रहते हैं।

धर्मी ठहराया जाना, पवित्रीकरण के पहले होता है

सुनिश्चित कीजिए कि आप अपने स्वयँ से बाहर इसकी वस्तुगत वास्तविकता को देखें। यह अब तक पवित्रीकरण की वास्तविकता नहीं है--व्यावाहारिक रूप से धर्मी बनने की यथार्थ प्रक्रिया, जैसा हम सोचते व महसूस करते व जीवित रहते हैं। वो भी एक वरदान/उपहार है (हम इसे तीन सप्ताह में देखेंगे)। किन्तु ये इस पर आधारित है। इससे पूर्व कि हम में से कोई आंशिक रूप से धर्मी होने में सच्ची सुसमाचारीय प्रगति कर सके, हमें यह विश्वास करना चाहिए कि हम पूणरूपेण धर्मी गिने या माने जाते हैं। अथवा इसे अन्य तरह से प्रस्तुत करें, एकमात्र पाप जिस पर आप परमेश्वर की सामर्थ्य में व्यावहारिक रूप से जय पा सकते हैं, एक क्षमा किया गया पाप है। धर्मी ठहराये जाने का महान् वरदान/उपहार पहले आता है और पवित्रीकरण की प्रक्रिया को समर्थ बनाता है।

3) परमेश्वर द्वारा प्रेम किये गए और अनुग्रह के साथ बर्ताव किये गए

धर्मी ठहराये जाने का अर्थ है, परमेश्वर द्वारा प्रेम किया जाना और अनुग्रह के साथ बर्ताव किया जाना।

हमारे लिये परमेश्वर के प्रेम के माप को, मसीह प्रमाणित करता है

यदि परमेश्वर ने आपसे प्रेम न किया होता, तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा, हल करने के लिए कोई समस्या न होती। यह आपके लिए उसका प्रेम था जिसने ‘उसे’ आपके पाप को अनदेखा करने को मजबूर किया और ‘उसे’ अधार्मिक दिखायी देने को मजबूर किया। यदि ‘उसने’ आप से प्रेम नहीं किया होता, ‘उसने’ पाप की समस्या को, हम सभी पर नाश होने की दण्डाज्ञा देकर, समाधान कर लिया होता। इसने उसकी धार्मिकता को प्रमाणित कर दिया होता। किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। और कारण यह है कि ‘वह’ आप से प्रेम करता है।

यह रोमियों 5: 6-8 में सर्वाधिक सुन्दर रूप में चित्रित किया गया है।

क्योंकि जब हम निर्बल ही थे, तो मसीह ठीक समय पर भक्तिहीनों के लिए मरा। किसी धर्मी जन के लिए कोई मरे, यह तो दुर्लभ है, परन्तु क्या जाने किसी भले मनुष्य के लिये कोई मरने का भी हियाव करे। परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।

‘उसके’ पुत्र की मृत्यु में परमेश्वर जो प्रमाणित कर रहा है वो ‘उसकी’ धार्मिकता की सच्चाई मात्र नहीं है, अपितु ‘उसके’ प्रेम का माप भी।

परमेश्वर का सेंत मेंत वरदान

रोमियों 3: 24 में पौलुस कहता है कि हम ‘‘उसके अनुग्रह से . . . सेंत मेंत (वरदान के रूप में)’’ धर्मी ठहराये गए हैं। पापियों के लिए परमेश्वर का प्रेम, ‘उसके’ अनुग्रह के वरदानों में उमण्डता है--अर्थात्, वरदान जो परमेश्वर की अत्यन्त दया से आते हैं, और हमारे कर्मों से या हमारी पात्रता के कारण नहीं।

पापों की क्षमा और परमेश्वर की धार्मिकता, सेंत मेंत वरदान हैं। इसका अर्थ है कि हमें उनकी कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती क्योंकि उनकी हर कीमत मसीह ने चुका दी है। वे कर्मों से कमाये नहीं जा सकते या माता-पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं किये जा सकते, या धर्म-संस्कारों के माध्यम से अवशोषित नहीं किये जा सकते। वे सेंत मेंत हैं, विश्वास के द्वारा ग्रहण किये जाने के लिए।

रोमियों 5: 17 इसे इस तरह कहता है:

क्योंकि जब एक मनुष्य के अपराध के कारण मृत्यु ने उस एक ही के द्वारा राज्य किया, तो जो लोग अनुग्रह और धर्मरूपी (धार्मिकता) वरदान बहुतायत से पाते हैं, वे एक मनुष्य के, अर्थात् यीशु मसीह के द्वारा अवश्य ही अनन्त जीवन में राज्य करेंगे।

पापों की क्षमा और परमेश्वर की धार्मिकता, अनुग्रह के सेंत मेंत वरदान हैं, जो परमेश्वर के प्रेम से बहते हैं।

धर्मी ठहराये जाने का अर्थ है क्षमा किया जाना, धर्मी गिना जाना, और परमेश्वर द्वारा प्रेम किया जाना।

4) परमेश्वर द्वारा सदा के लिए सुरक्षित किये गए

अन्त में, धर्मी ठहराये जाने का अर्थ है, परमेश्वर द्वारा सदा के लिए सुरक्षित कर लिया जाना।

यह सर्वोपरि आशीष है। पौलुस रोमियों 8: 30 में इसकी उद्धेषणा करता है। ‘‘फिर जिन्हें उस ने पहले से ठहराया, उन्हें बुलाया भी, और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है, और जिन्हें धर्मी ठहराया, उन्हें महिमा भी दी है।’’

यदि आप धर्मी ठहराये गए हैं, आप महिमा भी पायेंगे। आप आने वाले युग की महिमा तक पहुँचेंगे और परमेश्वर के साथ, आनन्द व पवित्रता में, सदा के लिए रहेंगे। यह इतना सुनिश्चित क्यों है ?

यह सुनिश्चित है क्योंकि परमेश्वर के ‘पुत्र’ की मृत्यु का प्रभाव, परमेश्वर के लोगों के लिए वस्तुगत और वास्तविक और निश्चित और अजेय है। जो भी यह प्राप्त करता है, यह सदा के लिए प्राप्त करता है। मसीह के लहु का प्रभाव अस्थिर नहीं है--कि अभी बचाया और अभी खो दिया और अभी बचाया और अभी खो दिया।

पद 32 का मुख्य बिन्दु यही है, ‘‘जिस ने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया: वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्योंकर न देगा ?’’--अर्थात्, क्या वह हमें महिमित भी न करेगा ! हाँ अवश्य करेगा ! वही बलिदान जो हमारी धार्मिकता को सुरक्षित करता है, हमें महिमित किये जाने को भी सुरक्षित करता है।

यदि आज प्रातः आपकी स्थिति है कि आप धर्मी ठहराये गए हैं, तो आप अभियोगपत्र और दण्डाज्ञा से परे हैं। पद 33: ‘‘परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा ? परमेश्वर वह है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है।’’ क्या आप मुख्य बिन्दु देखते हैं: यदि परमेश्वर ने अपने पुत्र की मृत्यु के द्वारा आपको धर्मी ठहराया है, कोई भी--न तो स्वर्ग में या पृथ्वी पर या पृथ्वी के नीचे--कोई भी आप की ओर दोष लगाने वाली अँगली नहीं उठा सकता। आपको महिमित किया जायेगा।

क्यों ? क्योंकि आप पापरहित हैं ? नहीं। क्योंकि आप मसीह के लहू के द्वारा धर्मी ठहराये गए हैं।